6.3 तीव्रता का झटका, गांवों पर कहर और बढ़ता हुआ आंकड़ा
एक तेज झटके ने मिट्टी के घरों की कतारें जैसे पल भर में समतल कर दीं—यह अफगानिस्तान भूकंप 6.3 तीव्रता का था और आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक मौतें 1,400 के पार जा चुकी हैं। घायलों की संख्या 2,500 से ज्यादा बताई जा रही है और जैसे-जैसे मलबा हट रहा है, संख्या बढ़ रही है। झटका 2 सितंबर 2025 को आया और सबसे ज्यादा असर दूरदराज के इलाकों में दिखा जहां कच्चे मकान और संकरी सड़कें पहले से ही कमजोर थीं।
तालिबान सरकार के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने बताया कि सबसे अधिक हताहत कुनर प्रांत में हुए हैं। कई जगह सड़कें टूटी हैं, पुल क्षतिग्रस्त हैं और शहरों–कस्बों के बीच नेटवर्क कट गया है। यही वजह है कि दुर्घटना का पूरा नक्शा अभी साफ नहीं है। शुरुआती घंटों में मौतों का जो आंकड़ा 800 के आसपास था, वह लगातार बढ़ रहा है क्योंकि राहत दल नई बस्तियों तक पहुंच पा रहे हैं।
भूकंप सतह के काफी पास केंद्रित था, इसलिए झटका कम दूरी तय कर सीधे ढांचे पर पड़ा। ऐसे झटकों में मिट्टी और ईंट–गारे की दीवारें पहले गिरती हैं। कई गांवों में लोग खुले में रात गुजारने को मजबूर हुए, क्योंकि आफ्टरशॉक्स का खतरा बना रहता है और दरकी दीवारें हल्के झटकों में भी ढह सकती हैं।
अस्पतालों में भीड़ है, खून और आपात दवाओं की जरूरत बढ़ गई है। कई घायल लोगों को प्राथमिक उपचार गांवों में ही देना पड़ रहा है क्योंकि एम्बुलेंस और भारी मशीनें वहां तक नहीं पहुंच पा रही हैं। स्थानीय टीमें फावड़े और हाथ के औजारों से मलबा हटाकर जिंदा लोगों की तलाश कर रही हैं—यह काम समय से दौड़ है क्योंकि पहले 72 घंटे खोज-बचाव के लिए निर्णायक माने जाते हैं।
क्यों इतना नुकसान, चुनौती क्या है और आगे क्या जरूरी
अफगानिस्तान दुनिया के सबसे सक्रिय भूकंपीय क्षेत्रों में है। हिंदू कुश पर्वत शृंखला के नीचे भारत और यूरेशिया प्लेटों की खींचातानी लगातार ऊर्जा जमा करती है। 2023 में हेरात क्षेत्र में 6.3 तीव्रता के भूकंप ने 2,000 से ज्यादा जानें ली थीं, और 2022 में पूर्वी हिस्से में 5.9 के झटके से 1,000 से अधिक मौतें हुई थीं। भवन मानकों की कमी, ढलानदार भूभाग और कमजोर सामुदायिक ढांचे इन घटनाओं को और घातक बना देते हैं।
इस बार भी तस्वीर कुछ वैसी ही है—मिट्टी के घर, लकड़ी की बीम, लोहे का सीमित इस्तेमाल और पुरानी दीवारें। झटकों के साथ भूस्खलन का जोखिम बढ़ जाता है, जिससे पहाड़ी सड़कों पर मलबा जमा होता है और राहत दल अटक जाते हैं। दूरसंचार बाधित होने से समन्वय मुश्किल होता है—किस गांव में कितने घायल हैं, कहां मेडिकल टीम भेजनी है, यह जानकारी देर से मिलती है।
तालिबान प्रशासन राहत समन्वय कर रहा है, लेकिन संसाधन सीमित हैं। ईंधन, भारी मशीनें, मोबाइल क्रेन और जेनेरेटर जैसे उपकरण हर जगह उपलब्ध नहीं हैं। देश का मानवीय संकट पहले से गहरा है—कामकाज की अर्थव्यवस्था कमजोर, नकदी की कमी और स्थानीय संस्थाओं पर अतिरिक्त बोझ। ऐसे में बाहरी मदद, जहां संभव हो, राहत की रफ्तार बढ़ा सकती है।
अभी की प्राथमिक जरूरतें साफ दिख रही हैं:
- जनरेटर, मोबाइल क्लीनिक और ट्रॉमा केयर के साथ आपात चिकित्सा सहायता
- स्वच्छ पानी, पानी शोधन किट और अस्थायी शौचालय ताकि संक्रमण न फैले
- तंबू, तिरपाल, कंबल और मैट—दिन में गरमी और रात में ठंड से बचाव
- खाद्य किट, दूध पाउडर और शिशु आहार
- भारी मशीनरी, फ्यूल और सुरक्षा उपकरण ताकि मलबा हटाने का काम तेज हो
आफ्टरशॉक्स के खतरे को हल्के में नहीं लिया जा सकता। अक्सर बड़े भूकंप के बाद दिनों—हफ्तों तक मध्यम तीव्रता के झटके आते हैं। सुरक्षा सलाह साफ है—दरकी इमारतों में वापस न जाएं, गैस/डीजल लीकेज के संकेतों पर ध्यान दें, और खुले, सुरक्षित मैदानों में रहें। स्थानीय प्रशासन के अलर्ट और निर्देशों को प्राथमिकता दें।
मौसम भी राहत में रोल निभाएगा। पहाड़ी और अर्ध-शुष्क इलाकों में दिन में तेज धूप और रात में तापमान तेजी से गिरता है। धूल, तेज हवा और बिखरे कंक्रीट–मिट्टी से सांस की दिक्कतें बढ़ सकती हैं, खासकर बुजुर्गों और बच्चों के लिए। इसलिए मास्क और बेसिक हाइजीन किट की जरूरत भी उतनी ही अहम है जितनी दवाओं की।
स्कूल, मस्जिदें और सामुदायिक भवन अक्सर अस्थायी शेल्टर बनते हैं, पर उनमें संरचनात्मक दरारें हों तो जोखिम बढ़ जाता है। कई जगह खुले ग्राउंड और अस्थायी शेड अधिक सुरक्षित विकल्प साबित होते हैं। राहत एजेंसियां आमतौर पर स्थानीय समुदाय नेताओं के साथ मिलकर ऐसे स्पेस तय करती हैं ताकि विवाद न हो और वितरण सुव्यवस्थित रहे।
दीर्घकाल में जख्म भरना आसान नहीं होगा। घर दोबारा बनाने के लिए सुरक्षित डिज़ाइन, हल्के लेकिन मजबूत सामग्री, और भूकंप–रोधी तकनीक की जरूरत है। स्थानीय कारीगरों को सरल रेट्रोफिटिंग (जैसे बैंडिंग, टाई-रॉड, हल्के छत) की ट्रेनिंग देकर नुकसान काफी घटाया जा सकता है। 2023 और 2022 की त्रासदियों के बाद जो सीखें सामने आई थीं—जैसे सामुदायिक ड्रिल, स्कूलों में सेफ्टी मॉड्यूल, और स्थानीय आपदा स्वयंसेवक नेटवर्क—उन्हें बड़े पैमाने पर लागू करना होगा।
फिलहाल, फोकस खोज और बचाव पर है। हर घंटे मायने रखता है—क्योंकि मलबे में फंसे लोगों के जीवित मिलने की संभावना समय के साथ घटती है। जैसे-जैसे सड़कें खुलेंगी और संचार बहाल होगा, तस्वीर साफ होगी कि कुनर और आसपास के किन-किन जिलों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ और कितने परिवार हमेशा के लिए उजड़ गए। देश पहले से गहरी मानवीय चुनौती से जूझ रहा है; इस झटके ने उस जख्म को और गहरा कर दिया है।