DMK ने ईसी के वोटर रोल समीक्षा को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

DMK ने ईसी के वोटर रोल समीक्षा को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

DMK ने ईसी के वोटर रोल समीक्षा को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

नवंबर 5, 2025 इंच  राजनीति subham mukherjee

द्वारा subham mukherjee

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री முத்துவேல் கருணாநிதி ஸ்டாலின் के नेतृत्व में டிராவிட முன்னேற்றக் கழகம் (DMK) ने 4 नवंबर, 2024 को चुनाव आयोग ऑफ इंडिया (ECI) के वोटर रोल की विशेष तीव्र समीक्षा (SIR) को असंवैधानिक और अनियमित बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। यह विवादित समीक्षा 51 करोड़ मतदाताओं को शामिल करती है, और इसकी शुरुआत उसी दिन हुई, जब तमिलनाडु में अगले विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां तेज हो रही हैं — 2026 के अप्रैल-मई में।

क्यों इतना विरोध?

एक बार फिर, राज्य के राजनीतिक दृश्य में एक ऐसा मुद्दा उभरा है जो सिर्फ वोटर लिस्ट का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की नींव को छू रहा है। चुनाव आयोग ने 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में SIR की दूसरी लहर शुरू कर दी है, जिसमें तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और पुडुचेरी शामिल हैं — सभी ऐसे राज्य जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लेकिन यह सब तब तक नहीं हुआ, जब तक सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में SIR की कानूनी वैधता पर फैसला नहीं दे दिया। फिर भी, ईसी ने आगे बढ़ दिया।

यहां तक कि एक बार बिहार में SIR के दौरान लाखों लोगों के नाम रोल से हटाए गए, जिनके पास दस्तावेज थे, लेकिन उनकी पहचान राज्य के स्थानीय पुलिस रिपोर्ट्स के आधार पर संदिग्ध ठहराई गई। अब तमिलनाडु में ऐसा ही डर है — खासकर गरीब, मुस्लिम और विपक्षी वोटरों के बीच।

44 दलों की भारी एकता

3 नवंबर को, चेन्नई के राज्य सचिवालय में एक ऐतिहासिक बैठक हुई। उसमें DMK सहित 44 राजनीतिक दलों ने भाग लिया। बीजेपी और एआईएडीएमके को नहीं बुलाया गया — जिससे यह बात सामने आई कि यह सिर्फ विपक्ष की आवाज़ नहीं, बल्कि एक व्यापक राजनीतिक विरोध है। एमएमएमके, पीएमके और टीवीके जैसे दल आमंत्रित थे, लेकिन बैठक में शामिल नहीं हुए। हालांकि, टीवीके ने बाद में कहा कि वे कानूनी चुनौती का समर्थन करते हैं।

इस बैठक में एक संयुक्त प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें ईसी को SIR रद्द करने की मांग की गई। प्रस्ताव में कहा गया: "यह प्रक्रिया एक अकेले निर्णय के तहत की जा रही है — यह लोगों के मताधिकार को छीनने और लोकतंत्र को दफनाने का प्रयास है।" चुनाव आयोग को "भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार का गुलाम" बताया गया।

क्या SIR असल में NRC का दूसरा नाम है?

पिछले कुछ सालों में, नागरिकता संबंधी विवादों ने देश के राजनीतिक दृश्य को बदल दिया है। अब जब चुनाव आयोग वोटर रोल की समीक्षा कर रहा है, तो कई विश्लेषक इसे एक छिपा हुआ NRC बता रहे हैं। न्यूज़ मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले याचिकाकर्ता — जिनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल थे — ने यह आरोप लगाया था कि चुनाव पंजीकरण अधिकारी (ERO) बिना किसी दस्तावेज़ के, सिर्फ पुलिस रिपोर्ट पर आधारित नागरिकता की जांच कर रहे हैं।

इसका मतलब क्या है? एक गरीब व्यक्ति जिसके पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं है, लेकिन उसका नाम वोटर लिस्ट में 1990 के दशक से है — अब उसका नाम हटाया जा सकता है। और जब वह नाम नहीं मिलेगा, तो वह चुनाव में वोट नहीं डाल सकेगा। यह एक अप्रत्यक्ष नागरिकता परीक्षण है — और यह उन लोगों के लिए खतरनाक है जो पहले से ही विश्वासघात का शिकार हो चुके हैं।

चुनाव आयोग का जवाब: निष्पक्षता की बात

चुनाव आयोग का कहना है कि SIR सिर्फ वोटर रोल की सटीकता बढ़ाने के लिए है। उनके अनुसार, बिहार में इस प्रक्रिया को "सफलतापूर्वक" पूरा किया गया है, और अब यह देश भर में लागू किया जा रहा है। ईसी ने कहा कि यह विधि के तहत एक अधिकार है, और उनका उद्देश्य किसी को भी दूर नहीं करना है।

लेकिन यहां एक बड़ा खाली स्थान है: अगर बिहार में SIR ने 15 लाख वोटरों को रोल से हटा दिया, तो फिर उसकी वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार क्यों नहीं किया जा रहा? यही सवाल अब तमिलनाडु के लोगों के मन में है।

2026 के चुनाव का खेल

2026 के चुनाव का खेल

यह सब सिर्फ वोटर लिस्ट का मामला नहीं है। यह 2026 के चुनाव की रणनीति है। तमिलनाडु में DMK के लिए 2021 के चुनाव में जीत का आधार शहरी गरीब, मुस्लिम और अनुसूचित जाति वोटरों का समर्थन था। अगर इनमें से लाखों वोटर रोल से हटा दिए जाते हैं, तो यह चुनावी भार बदल सकता है।

इसी तरह, पश्चिम बंगाल और केरल में भी विपक्षी दलों के लिए यह एक खतरा है। बीजेपी ने अभी तक कोई सीधा बयान नहीं दिया है — लेकिन उसके समर्थक नेताओं ने सोशल मीडिया पर SIR की प्रशंसा की है। यह एक बहुत ही सावधानी से चलाई जा रही रणनीति लगती है।

अगला कदम क्या है?

सुप्रीम कोर्ट अगले कुछ हफ्तों में इस मामले की सुनवाई शुरू करेगा। तमिलनाडु सरकार ने आरोप लगाया है कि SIR के लिए तय की गई तारीख — 7 फरवरी, 2026 — चुनाव से ठीक पहले है, जिससे वोटरों को अपील करने का समय नहीं मिलेगा। अगर कोर्ट ने इसे अवैध पाया, तो यह चुनाव आयोग के लिए एक बड़ा झटका होगा।

लेकिन अगर कोर्ट ने इसे अनुमोदित कर दिया, तो देश में एक खतरनाक पहल शुरू हो जाएगी — जहां वोटर की पहचान का निर्णय स्थानीय पुलिस रिपोर्ट और राजनीतिक लालच पर निर्भर होगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

SIR क्या है और यह कैसे काम करता है?

SIR यानी विशेष तीव्र समीक्षा, चुनाव आयोग द्वारा वोटर रोल की समीक्षा की एक विधि है, जिसमें नागरिकता के दस्तावेजों की जांच के आधार पर वोटरों को रोल से हटाया जा सकता है। यह प्रक्रिया स्थानीय चुनाव पंजीकरण अधिकारी (ERO) द्वारा चलाई जाती है, जो अक्सर पुलिस रिपोर्ट और निजी दस्तावेजों के आधार पर निर्णय लेते हैं। इसमें वोटर को अपनी पहचान साबित करने के लिए जन्म प्रमाणपत्र, निवास प्रमाण या अन्य दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता होती है।

क्यों तमिलनाडु और अन्य राज्य इसके खिलाफ हैं?

तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में विपक्षी दलों का बड़ा वोटर आधार है, जिसमें मुस्लिम, अनुसूचित जाति और गरीब शहरी वर्ग शामिल हैं। इन समूहों के पास अक्सर दस्तावेजों की कमी होती है, जिसका फायदा उठाकर उन्हें वोटर लिस्ट से हटाया जा सकता है। इसलिए ये राज्य सरकारें चुनाव आयोग को राजनीतिक रूप से भारतीय जनता पार्टी का उपकरण बता रही हैं।

क्या बिहार में SIR ने वाकई सफलता प्राप्त की?

चुनाव आयोग का दावा है कि बिहार में 15 लाख अवैध वोटर हटाए गए, लेकिन अनुसंधान संगठनों ने दावा किया है कि इनमें से 40% वोटर ऐसे थे जिनके पास वैध दस्तावेज थे, लेकिन उनकी पहचान पुलिस रिपोर्ट के आधार पर गलत ठहराई गई। यह एक विश्वसनीय तरीके से नहीं, बल्कि एक राजनीतिक निर्णय के रूप में लगता है।

2026 के चुनाव पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है?

अगर तमिलनाडु में 5-10 लाख वोटर रोल से हटा दिए जाते हैं, तो DMK की जीत के अवसर कम हो सकते हैं। यह खासकर तब होगा जब ये वोटर उन विधानसभा क्षेत्रों से हों जहां DMK का बहुमत अत्यंत संकीर्ण है। इसी तरह, पश्चिम बंगाल और केरल में भी विपक्षी दलों के लिए यह एक गंभीर चुनौती बन सकती है।

क्या चुनाव आयोग के पास ऐसा करने का कानूनी अधिकार है?

चुनाव आयोग के पास वोटर रोल को सुधारने का अधिकार है, लेकिन नागरिकता की जांच करने का नहीं। यह नागरिकता अधिनियम के तहत केंद्र सरकार का अधिकार है। इसलिए जब ईसी स्थानीय पुलिस रिपोर्ट के आधार पर वोटर की नागरिकता को चुनौती देता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 326 के उल्लंघन के बराबर होता है — जो हर नागरिक को मतदान का अधिकार देता है।

subham mukherjee

subham mukherjee

मैं एक प्रतिष्ठित पत्रकार और लेखक हूँ, जो दैनिक खबरों से जुड़े मुद्दों पर लिखना पसंद करता हूँ। मैंने कई प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों में कार्य किया है और मुझे जनता को सही और सटीक जानकारी प्रदान करने में खुशी मिलती है।

14 टिप्पणि

  • Ritu Patel

    Ritu Patel

    6 नवंबर 2025

    ये सब बस एक बड़ा धोखा है। गरीबों के नाम हटाने के लिए पुलिस रिपोर्ट पर भरोसा करना? अरे भाई, जब तक तुम्हारे पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं है, तब तक तुम भारतीय नहीं हो? ये लोग तो लोकतंत्र को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

  • Deepak Singh

    Deepak Singh

    8 नवंबर 2025

    यहाँ एक गंभीर संवैधानिक प्रश्न है: चुनाव आयोग का अधिकार केवल वोटर पंजीकरण की शुद्धता सुनिश्चित करने तक सीमित है-नागरिकता की जाँच नहीं। अनुच्छेद 326 के उल्लंघन के बिना, यह प्रक्रिया कानूनी रूप से अमान्य है। यह एक जानबूझकर बनाया गया अवैध उपकरण है।

  • Rajesh Sahu

    Rajesh Sahu

    9 नवंबर 2025

    अरे बाप रे! ये सब विपक्षी दल बस अपनी हार का बहाना ढूंढ रहे हैं। SIR तो सिर्फ गलत नाम हटाने के लिए है-जो लोग बिना दस्तावेज़ के वोट कर रहे थे, उन्हें बाहर करना जरूरी है। ये लोग तो भारत को बर्बाद कर रहे हैं!

  • Chandu p

    Chandu p

    10 नवंबर 2025

    दोस्तों, ये सिर्फ एक चुनाव का मामला नहीं है। ये तो हमारी पहचान का सवाल है। जिन लोगों के पास दस्तावेज़ नहीं, वो भी हमारे देश के हिस्से हैं। DMK ने जो किया, वो सही है। हमें एक साथ खड़े होना होगा। 🙏

  • Gopal Mishra

    Gopal Mishra

    11 नवंबर 2025

    इस प्रक्रिया के तहत नागरिकता की प्रमाणित करने का बोझ व्यक्ति पर डाला जा रहा है, जबकि संविधान ने मतदान के अधिकार को एक सार्वभौमिक और अनुपलब्ध अधिकार के रूप में निर्धारित किया है। यह एक विधिक अनुपालन का उल्लंघन है, और इसे एक राजनीतिक उपकरण के रूप में उपयोग करना लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है।

  • Swami Saishiva

    Swami Saishiva

    12 नवंबर 2025

    अरे ये सब बकवास है। जिनके पास दस्तावेज़ नहीं, वो वोट नहीं दे सकते। बिहार में तो 15 लाख नाम हटे, और अभी तक कोई बगाड़ नहीं हुआ। तुम लोग बस अपनी हार का डर दिखा रहे हो।

  • Swati Puri

    Swati Puri

    14 नवंबर 2025

    मैं इस बात से सहमत हूँ कि SIR के तहत दस्तावेज़ की आवश्यकता एक बड़ी समस्या है, खासकर जब यह पुलिस रिपोर्ट पर आधारित है। यह एक विशेष रूप से विसंगति वाली रणनीति है जो अप्रत्यक्ष रूप से एक नागरिकता परीक्षण का रूप ले रही है।

  • megha u

    megha u

    14 नवंबर 2025

    बस इंतजार है... अगला नागरिकता संशोधन अधिनियम आएगा। ये सब एक बड़ा योजना है। अगले 6 महीने में हर जगह नागरिकता की जांच शुरू हो जाएगी। तुम सब लोग तैयार हो जाओ। 😈

  • pranya arora

    pranya arora

    15 नवंबर 2025

    अगर हम लोगों के मताधिकार को दस्तावेज़ के आधार पर निर्धारित कर दें, तो यह लोकतंत्र नहीं, बल्कि एक वर्गीय व्यवस्था बन जाएगी। जो लोग अपनी जड़ों को भूल गए हैं, वो भी हमारे देश के हिस्से हैं।

  • Arya k rajan

    Arya k rajan

    15 नवंबर 2025

    ये सब बहुत दर्दनाक है। मैंने अपने दादाजी को देखा है-उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं था, लेकिन वो 50 साल से वोट देते रहे। अगर अब उनका नाम हट गया, तो क्या वो अब भारतीय नहीं रह गए? हमें इंसानियत पर विश्वास रखना चाहिए।

  • Sree A

    Sree A

    15 नवंबर 2025

    SIR के तहत वोटर रोल की समीक्षा कानूनी रूप से अधिकृत है, लेकिन नागरिकता की जाँच का अधिकार चुनाव आयोग के पास नहीं है। यह एक संवैधानिक अतिक्रमण है।

  • DEVANSH PRATAP SINGH

    DEVANSH PRATAP SINGH

    16 नवंबर 2025

    हमें चुनाव आयोग को भरोसा करना चाहिए। वो तो सिर्फ असली वोटरों को बचाना चाहते हैं। ये जो विरोध हो रहा है, वो बस डर की भावना है।

  • SUNIL PATEL

    SUNIL PATEL

    17 नवंबर 2025

    ये सब बेकार की बहाना है। अगर तुम्हारे पास दस्तावेज़ नहीं हैं, तो तुम वोट नहीं दे सकते। यह नियम है। इसके खिलाफ बोलना बेकार है।

  • Avdhoot Penkar

    Avdhoot Penkar

    18 नवंबर 2025

    अरे यार, बिहार में तो लाखों नाम हटे, और अभी तक कोई बगाड़ नहीं हुआ। तुम लोग बस अपनी हार का डर दिखा रहे हो। ये तो बस एक ट्रेन है-और तुम उसके आगे खड़े हो गए हो। 😂

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