Earth Day 2025: धरती बचाओ का संकल्प और 55वीं वर्षगांठ

Earth Day 2025: धरती बचाओ का संकल्प और 55वीं वर्षगांठ

Earth Day 2025: धरती बचाओ का संकल्प और 55वीं वर्षगांठ

अप्रैल 22, 2025 इंच  पर्यावरण विकास शर्मा

द्वारा विकास शर्मा

अर्थ डे 2025: इतिहास, महत्व और मौजूदा हालात

हर साल 22 अप्रैल को Earth Day 2025 नाम से एक बड़ा पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1970 में अमेरिका के सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने की थी, जब लोगों को साफ हवा, पानी और सुरक्षित पर्यावरण के लिए आवाज उठाने की जरूरत महसूस हुई। उस वक्त न तो सोशल मीडिया था, न ही पर्यावरण को लेकर इतनी जागरूकता, फिर भी करीब दो करोड़ अमेरिकनों ने सड़कों पर उतरकर प्रकृति की सुरक्षा के पक्ष में प्रदर्शन किया। बस यहीं से इस अभियान ने वैश्विक आंदोलन का रूप ले लिया।

आज Earth Day 2025 दुनिया के 192 से ज्यादा देशों में मनाया जाता है। भारत भी इनमें आगे है। इसकी खास बात यह है कि यह तारीख ऐसा वक्त है जब उत्तरी गोलार्द्ध में बसंत और दक्षिणी गोलार्द्ध में पतझड़ होता है—प्रकृति का संतुलन और सामंजस्य दिखाता है। यह एक दिन नहीं, बल्कि विचार है कि धरती सिर्फ हमारी नहीं, अगली पीढ़ियों की भी है।

55वीं वर्षगांठ और बदलते इरादे

55वीं वर्षगांठ और बदलते इरादे

2025 में अर्थ डे की 55वीं वर्षगांठ है, जो अपने आप में एक बड़ा पड़ाव है। मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी चिंता है जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, वनों की कटाई और बढ़ता प्रदूषण। दुनियाभर में लोग अब यह जान भी रहे हैं कि अगर करोड़ों लोग मिलकर अपनी आदतों में छोटे-छोटे बदलाव लाएं, तो बड़ी तस्वीर बदल सकती है।

  • पानी और बिजली की बचत
  • प्लास्टिक के इस्तेमाल में कटौती
  • स्थानीय और मौसमी भोजन को बढ़ावा
  • पुनरावृत्ति योग्य सामान का उपयोग
  • पेड़ लगाना और सार्वजनिक स्थानों की सफाई

ऐसे प्रयास अब स्कूलों से लेकर ऑफिस तक, हर जगह जरूरी हो गए हैं। 2025 के अर्थ डे का थीम पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन ध्यान पर्यावरण संरक्षण और सामूहिक जिम्मेदारी पर रहेगा। इस दिन गली-मोहल्लों में साफ-सफाई और ऑनलाइन प्रचार अभियानों के जरिए लोगों को जागरूक किया जाता है, ताकि यह संदेश घर-घर तक पहुंचे कि धरती हमारी 'मां' है और उसकी रक्षा हर किसी का फर्ज है।

इतिहास में देखें तो अर्थ डे के दो अलग-अलग रूप रहे हैं। पहला 22 अप्रैल वाला, और दूसरा 20 मार्च को जब एक्विनॉक्स (बराबर दिन-रात) के नाम पर शांति के पक्षधर जॉन मैककॉनल ने अभियान छेड़ा था। लेकिन धीरे-धीरे 22 अप्रैल वाली तारीख पूरी दुनिया में मान्य हो गई।

आज अर्थ डे आंदोलन सिर्फ एक दिन की बात नहीं रह गया है। असल में यह नीति, शिक्षा और व्यक्तिगत व्यवहार बदलने की कोशिश है। विश्व के बड़े शहरों से लेकर छोटे गांवों तक लोग अब जागरूक हो रहे हैं कि जिस रफ्तार से हम प्राकृतिक संसाधन खर्च कर रहे हैं, वह आगे चलकर भारी पड़ सकता है। बेहतर यही है कि हम प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर चलें, ताकि भविष्य सहेजा जा सके।


साझा:
विकास शर्मा

विकास शर्मा

मैं एक प्रतिष्ठित पत्रकार और लेखक हूँ, जो दैनिक खबरों से जुड़े मुद्दों पर लिखना पसंद करता हूँ। मैंने कई प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों में कार्य किया है और मुझे जनता को सही और सटीक जानकारी प्रदान करने में खुशी मिलती है।

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