जब किसी को अपराध का आरोप लगता है तो अक्सर उसे जेल में रखा जाता है। लेकिन अगर कोर्ट कहे कि वह व्यक्ति अभी भी मुकदमे के दौरान बाहर रह सकता है, तो इसे ही अंतरिम जमानत कहते हैं। ये जमानत अस्थायी होती है, इसलिए ‘अंतरिम’ शब्द इस्तेमाल होता है।
सामान्य तौर पर दो बातें देखी जाती हैं – पहले आरोपी की जेल में रहने की जरूरत या नहीं और दूसरा वह केस कितना गंभीर है। अगर कोर्ट समझे कि गिरफ्तारी से आरोपी को बहुत नुकसान होगा, जैसे नौकरी खोना या परिवार का सहारा टूट जाना, तो जमानत दे दी जाती है। अक्सर वकील के आवेदन पर यह फैसला होता है।
पिछले हफ़्ते दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बड़े आर्थिक धोखाधड़ी केस में दो लोगों को अंतरिम जमानत दे दी थी, क्योंकि उनके खिलाफ अभी तक पूरी साक्ष्य नहीं जुटाए गए थे। इसी तरह, उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख राजनेता को भी राजनीतिक कारणों से जेल नहीं भेजा गया और उन्हें तुरंत रिहा कर दिया गया। इन मामलों ने दिखाया कि अदालतें कब, कैसे जमानत देती हैं और जनता के सवालों का जवाब देती हैं।
अंतरिम जमानत मिलने पर आरोपी को कुछ शर्तें भी लगाई जा सकती हैं – जैसे पुलिस स्टेशन में रोज़ाना रिपोर्ट देना या पासपोर्ट जमा कराना। अगर इन शर्तों की उल्लंघन होती है तो जमानत वापस ले ली जा सकती है और फिर से जेल भेजा जा सकता है।
आपको यह समझना ज़रूरी है कि अंतरिम जमानत का मतलब यह नहीं कि आरोपी बेगुनाह है; यह सिर्फ एक अस्थायी राहत है जब तक मुकदमा पूरी तरह तय न हो जाए। अक्सर लोग इसको ‘बिना सजा के रिहाई’ समझ बैठते हैं, लेकिन कोर्ट हमेशा केस की गंभीरता को ध्यान में रखकर फैसला करता है।
अगर आप या आपका कोई परिचित अंतरिम जमानत चाह रहा है, तो सबसे पहला कदम है एक अनुभवी वकील से मिलना। वकील आपके दस्तावेज़ तैयार करेगा और अदालत के सामने सही तर्क पेश करेगा। साथ ही, यह भी याद रखें कि सभी शर्तें पूरी करना बहुत जरूरी है, नहीं तो फिर से जेल का सामना कर सकते हैं।
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने स्वास्थ्य के आधार पर एक सप्ताह की अंतरिम जमानत के लिए आवेदन किया है, जिसे दिल्ली कोर्ट 1 जून को सुनेगी। मामला कथित आबकारी घोटाले से जुड़ा है। विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेया ने प्रवर्तन निदेशालय से 1 जून तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई अंतरिम जमानत 2 जून को समाप्त हो रही है।
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