सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दिल्ली-NCR से आवारा कुत्ते हटाने का आदेश
देश की राजधानी में आवारा कुत्तों की बेतहाशा बढ़ती संख्या और बाइट के मामलों ने आखिरकार देश की सर्वोच्च अदालत को दखल देने पर मजबूर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त 2025 को एक आदेश में दिल्ली, नोएडा और गुड़गांव की नगर पालिकाओं को आठ हफ्ते के भीतर सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी शेल्टर में रखने और वापस सड़कों पर ना छोड़ने के आदेश दिए। कोर्ट ने साफ कहा - यह इतनी गंभीर स्थिति है कि किसी भी तरह की भावनात्मक दलीलों की कोई जगह नहीं है।
कोर्ट के मुताबिक, सिर्फ छह हफ्ते के भीतर 5000 ऐसे इलाकों से कुत्तों का स्टरलाइजेशन कर उन्हें शेल्टर होम्स में रखना जरूरी है, जहां सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। जमीन का इंतजाम कर नए शेल्टर बनाने और उनकी निगरानी का जिम्मा भी MCD, नोएडा और गुड़गांव प्रशासन पर डाला गया है। ये आदेश तब आया जब राजधानी में रैबीज से मौतों के आंकड़े और डॉग बाइट केसों की खबरों से चिंता बढ़ गई थी।

जमीनी सच्चाई: सुविधा कम, जिम्मा बड़ा
अगर इन आदेशों की सच्चाई देखनी हो तो एमसीडी के एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) सेंटर्स का हाल देखिए। इंडिया टुडे की पड़ताल में सामने आया कि ज्यादातर ABC सेंटरों की हालत बदतर है—गेट में ताले, स्टाफ गायब, सफाई का नामोनिशान नहीं, रिकॉर्ड भी गायब। दिल्ली में करीब 10 लाख आवारा कुत्ते हैं और इतने बड़े ऑपरेशन के लिए मुनासिब जगह और संसाधन दूर-दूर तक नहीं दिख रहे। एमसीडी के पास फिलहाल सिर्फ 10 स्टरलाइजेशन सेंटर हैं। खुद MCD के चेयरपर्सन सत्य शर्मा मानते हैं कि ज़मीन आवंटन और इंफ्रास्ट्रक्चर सबसे बड़ा चैलेंज है। फिर भी उन्होंने भरोसा दिलाया कि आदेश लागू करने की पूरी कोशिश होगी।
वहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने आदेश का समर्थन किया। उन्होंने इसे 'विशाल समस्या' बताया और कहा कि सरकार पूरी प्लानिंग के साथ आदेश लागू करेगी। MCD अधिकारी आपसी मीटिंग्स और तत्काल एक्शन प्लान की बात कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हालात इसके बिल्कुल उलट हैं।
दूसरी तरफ जानवरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन इस ऑर्डर पर बिल्कुल भड़क गए हैं। PETA इंडिया ने इसे न सिर्फ Supreme Court के आदेश का उल्लंघन बल्कि तर्कहीन और अव्यावहारिक भी बताया। उनका कहना है—ऐसा करने से न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशा-निर्देश टूटेंगे, बल्कि भारत के Prevention of Cruelty to Animals Act की भी अनदेखी होगी। FIAPO और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी इसे 'गुस्से में दिया गया आदेश' बताया जो न तो तर्कसंगत है और न ही लागू हो सकता है।
हकीकत ये है कि एमसीडी के पास हर जोन में सिर्फ 2-3 डॉग कैचिंग वैन हैं, वो भी स्टाफ और संसाधन की भारी कमी से जूझ रहे हैं। लाखों कुत्तों के लिए खाना, मेडिकल स्टाफ, एम्बुलेंस, CCTV और देखभाल का खर्च सौ करोड़ों तक पहुंच सकता है। अभी से कई पशु प्रेमी सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, यहां तक कि पुलिस ने इंडिया गेट पर डेमो करने वाले एक्टिविस्ट्स के खिलाफ केस भी दर्ज किया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जो भी इस मुहिम में बाधा बनेगा, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। हालांकि, जानकारों की मानें तो कुत्तों की आबादी को सही ढंग से रोकने का एक ही तरीका है—वैज्ञानिक ढंग से स्टरलाइजेशन और समुदाय आधारित देखरेख। सड़कों से जबरन हटाना न तो व्यावहारिक है, न ही टिकाऊ।