जब किसी को पुलिस ने गिरफ़्तार किया होता है तो अक्सर लोग पूछते हैं – ‘क्या मैं घर जा सकता हूँ?’ यही वह जगह है जहाँ जमानत काम आती है। जमानत का मतलब है कि आरोपी को अदालत के आदेश पर कुछ शर्तें पूरी करने के बाद अस्थायी रूप से रिहा कर दिया जाता है। तब तक केस चल रहा होता है, लेकिन जेल में नहीं रहना पड़ता।
ज्यादातर मामलों में पुलिस को आरोपी को एक या दो दिन के भीतर कोर्ट ले जाना जरूरी होता है। अगर अदालत यह देखती है कि अपराध बहुत गंभीर नहीं है, तो वह जमानत दे देती है। लेकिन कुछ केस – जैसे हत्या, दहशतगर्दी या बड़े आर्थिक धोखाधड़ी – में अदालत जमानत न देने का फ़ैसला कर सकती है।
जमानत मिलने के लिए दो मुख्य बातों पर ध्यान देना पड़ता है:
अगर ये दोनों चीज़ें अदालत के सामने साफ़ हैं, तो जमानत मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
जमानत दो तरह से मिल सकती है – बांड (भुगतान) या व्यक्तिगत गारंटी। बांड में अदालत तय करती है कि एक निश्चित रकम जमा करनी होगी, जिसे अगर आरोपी फरार हो गया तो जब्त किया जा सकता है। दूसरी तरफ, यदि आप भरोसेमंद व्यक्ति की गारंटी दे सकते हैं, तो वह भी जमानत का तरीका बन जाता है।
आवेदन प्रक्रिया बहुत कठिन नहीं है:
ध्यान रखें, अदालत हमेशा पूछती है कि आप केस के दौरान पुलिस की जांच में बाधा न डालें। इसलिए अगर आपको कोई नोटिस मिला तो तुरंत वकील से संपर्क करें।
एक बात और – जमानत मिलने पर भी आपके पास कुछ प्रतिबंध रह सकते हैं। जैसे, रात के 10 बजे के बाद बाहर नहीं निकलना, किसी खास जगह जाना मना होना या फोन की निगरानी रखना। ये सब शर्तें अदालत तय करती है और उनका पालन करना जरूरी है।
तो संक्षेप में कहें तो जमानत वह मौका है जब आप जेल से बचते हुए केस के आगे बढ़ने का इंतज़ार कर सकते हैं। सही दस्तावेज़, भरोसेमंद वकील और अदालत की शर्तों का पालन आपको इस प्रक्रिया को आसान बना देगा। अगर आपके पास अभी भी सवाल हैं, तो नीचे टिप्पणी में पूछें या तुरंत कानूनी सलाह लें।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख हेमंत सोरेन को झारखंड हाई कोर्ट के जमानत आदेश के बाद बिरसा मुंडा जेल से रिहा कर दिया गया। उन्हें कथित भूमि घोटाला और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में गिरफ्तार किया गया था। सोरेन के साथ उनकी पत्नी और पार्टी के सदस्य भी मौजूद थे।
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